( तर्ज - अलमस्त पिलाया प्याला ० )
लख रूप दिवाने ! घटमें !
चल आँख उठा चट - चटमें रे ॥टेक ॥
चाँद- सुरजविन जलती ज्योती ,
देख जरा तन - मठमें ।
रंग रूपविन गिरे उजारा ,
चेतन है घट - घटमें रे ॥१ ॥
अटल रूप जल - थलमें व्याप्यो ,
जरा न रीतो उनमें ।
ग्यान दृष्टीसे जो कोड़ जाने ,
समा जात पट - पटमें रे ॥२ ॥
सत्संगत बिन मिले न मारग ,
भले घुमो कोइ बनमें ।
तुकड्यादास कहे जागो जी !
मरो न जग - खटखटमें रे ॥३ ॥
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